अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से 18 वादे किए। इनमें से कई वादे एक साल के अंदर पूरे किए जाने की बात कही गई है, लेकिन ठेकेदारी पर काम कर रहे कर्मचारियों को पक्का करने, जन लोकपाल बिल के आधार पर रामलीला मैदान में कानून बनाने जैसे वादे उनके लिए मुश्किल का सबब बन रहे हैं। केजरीवाल ने जिन वादों का पूरा करने का भी दावा किया है उनमें भी खामियां हैं। केजरीवाल ने हर रोज दिल्ली के हर घर को 700 लीटर पानी मुफ्त देने का वादा किया था। लेकिन उनकी सरकार 666 लीटर पानी ही मुफ्त दे रही है। वहीं, कई लोग इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि इस महीने का बिजली का बिल आए ताकि पता चले कि केजरीवाल सरकार के आने के बाद उनके बिलों में कितना फर्क आया है। कई लोगों की नजर में बिजली को लेकर केजरीवाल के ऐलान फायदा बहुत ही सीमित लोगों को होगा। ऐसी हालत में खुद को वादों के जाल से घिरता देख अरविंद केजरीवाल धरने के जरिए ऐसे रास्ते पर चल पड़े, जहां कुछ लोगों की नजर में न सिर्फ उनकी साख बढ़ने की संभावना थी बल्कि कुछ दिनों तक उनसे उनके वादों के बारे में भी नहीं पूछेगा। 28 दिसंबर, 2013 से पहले उनकी भूमिका सवाल पूछने वाले शख्स की तरह थी, जो व्यवस्था और सिस्टम पर तीखे सवाल करता था। जानकारों की नजर में केजरीवाल का धरने पर बैठना उनकी 'मजबूरी' है।
कांग्रेस विरोधी हैं, यह संदेश देना चाहते हैं
कांग्रेस की मदद से दिल्ली में सरकार चला रहे अरविंद केजरीवाल को यह समझाना मुश्किल होने लगा कि वह जिस पार्टी के खिलाफ महीनों तक दिल्ली और देश की सड़कों पर संघर्ष करते रहे, उस पार्टी की सरकार और उसके नेताओं को भ्रष्ट बताते रहे, उसी की मदद से वे सरकार क्यों चला रहे हैं।
दिल्ली की जनता को वे यह समझा रहे हैं कि उन्होंने कांग्रेस से मदद नहीं मांगी थी और दिल्ली की जनता को चुनाव के बोझ से बचाने और उसकी सेवा करने के लिए आम आदमी पार्टी सरकार चला रही है, लेकिन केजरीवाल और उनकी पार्टी यह जानती है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दिल्ली के बाहर देश के अन्य राज्यों में कांग्रेस की मदद से सरकार चलाने की बात को समझाना बहुत मुश्किल होगा। ऐसे में दिल्ली पुलिस के विरोध के बहाने केजरीवाल को कांग्रेस और केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधने का मौका मिल गया। केजरीवाल और उनकी पार्टी को राजनीतिक तौर पर यह फायदेमंद लगा। धरने पर बैठकर वह दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों को यह संदेश देना चाहते थे कि वह कांग्रेस विरोधी हैं और जनता के मुद्दे पर अपनी सरकार को भी दांव पर लगा सकते हैं। केजरीवाल यह बताने की भी कोशिश कर रहे थे कि उनकी पार्टी सत्ता की भूखी नहीं है और जनता के हितों की राजनीति करती है।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से
ReplyDelete18 वादे किए। इनमें से कई वादे एक साल
के अंदर पूरे किए जाने की बात कही गई है,
लेकिन ठेकेदारी पर काम कर रहे कर्मचारियों
को पक्का करने, जन लोकपाल बिल के
आधार पर रामलीला मैदान में कानून
बनाने जैसे वादे उनके लिए मुश्किल का
सबब बन रहे हैं। केजरीवाल ने जिन वादों
का पूरा करने का भी दावा किया है उनमें
भी खामियां हैं। केजरीवाल ने हर रोज
दिल्ली के हर घर को 700 लीटर पानी
मुफ्त देने का वादा किया था। लेकिन
उनकी सरकार 666 लीटर पानी ही मुफ्त
दे रही है। वहीं, कई लोग इस बात का
इंतजार कर रहे हैं कि इस महीने का
बिजली का बिल आए ताकि पता चले
कि केजरीवाल सरकार के आने के बाद
उनके बिलों में कितना फर्क आया है।
कई लोगों की नजर में बिजली को लेकर
केजरीवाल के ऐलान फायदा बहुत ही
सीमित लोगों को होगा। ऐसी हालत में
खुद को वादों के जाल से घिरता देख अरविंद
केजरीवाल धरने के जरिए ऐसे रास्ते पर चल
पड़े, जहां कुछ लोगों की नजर में न सिर्फ
उनकी साख बढ़ने की संभावना थी बल्कि
कुछ दिनों तक उनसे उनके वादों के बारे में
भी नहीं पूछेगा।
28 दिसंबर, 2013 से पहले उनकी भूमिका
सवाल पूछने वाले शख्स की तरह थी, जो
व्यवस्था और सिस्टम पर तीखे सवाल
करता था। जानकारों की नजर में केजरीवाल
का धरने पर बैठना उनकी 'मजबूरी' है।
कांग्रेस विरोधी हैं, यह संदेश देना चाहते हैं
कांग्रेस की मदद से दिल्ली में सरकार चला
रहे अरविंद केजरीवाल को यह समझाना
मुश्किल होने लगा कि वह जिस पार्टी के
खिलाफ महीनों तक दिल्ली और देश की
सड़कों पर संघर्ष करते रहे, उस पार्टी की
सरकार और उसके नेताओं को भ्रष्ट
बताते रहे, उसी की मदद से वे सरकार
क्यों चला रहे हैं।
दिल्ली की जनता को वे यह समझा रहे हैं
कि उन्होंने कांग्रेस से मदद नहीं मांगी थी
और दिल्ली की जनता को चुनाव के बोझ
से बचाने और उसकी सेवा करने के लिए
आम आदमी पार्टी सरकार चला रही है,
लेकिन केजरीवाल और उनकी पार्टी यह
जानती है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर
दिल्ली के बाहर देश के अन्य राज्यों में
कांग्रेस की मदद से सरकार चलाने की
बात को समझाना बहुत मुश्किल होगा।
ऐसे में दिल्ली पुलिस के विरोध के बहाने
केजरीवाल को कांग्रेस और केंद्र सरकार
पर जमकर निशाना साधने का मौका
मिल गया। केजरीवाल और उनकी पार्टी
को राजनीतिक तौर पर यह फायदेमंद
लगा। धरने पर बैठकर वह दिल्ली और
देश के अन्य हिस्सों को यह संदेश देना
चाहते थे कि वह कांग्रेस विरोधी हैं और
जनता के मुद्दे पर अपनी सरकार को भी
दांव पर लगा सकते हैं। केजरीवाल यह
बताने की भी कोशिश कर रहे थे कि उनकी
पार्टी सत्ता की भूखी नहीं है और जनता
के हितों की राजनीति करती है।